लेखनी कहानी -28-Jun-2022बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
हम माता-पिता ने भी उसे बहुत समझाया पर वह किसी की बात नहीं माना। वह मुझे किसी से बात नहीं करने देता था। मैं बिना उसकी मर्जी के घर की दहलीज भी नहीं लांघ सकती थी अब वह कुछ कमाने भी लगा था उसने अपने मां-बाप से अलग एक कमरा किराए पर ले लिया। वहां पर कुछ दिन तो सब ठीक रहा ।
लेकिन जब कुछ उसके मन का सा नहीं होता, तो वह मुझे मारपीटने लगा ।और अगले दिन ऐसा हो जाता था, जैसे कि कल कुछ हुआ ही नहीं ।मेरे लिए महंगे महंगे गिफ्ट लाता मेरा ध्यान रखता कभी मेरे लिए फूल लाता मुझे उसका व्यवहार कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।
एक दिन मुझे पता लगा कि मैं मां बनने वाली हूं मुझे लगा शायद मेरी परेशानी खतम हो जाएगी ।रोमी मेरा पहले से अधिक ध्यान रखने लगा था। कुछ दिनों बाद हमारे घर में निशी आ गई और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खुशियों से भर दे वह मुझसेऔरनिशी से बहुत प्यार करते थे ।"
लेकिन कल रात वापस से उसके अंदर पता नहीं क्या परिवर्तन हुए मैं गहरी नींद में सो रही थी ,अचानक से निशी जोर जोर से रोने लगी ।मेरी आंख नहीं खुली वह निशी पर जोर जोर से चिल्लाने लगा उसने उसके मासूम गाल पर थप्पड़ जड़ दिए थप्पड़ की आवाज से मेरी अचानक से आंखें खुली ,मैंने जैसे-तैसे निशि को बचाया। मैंने देखा वह निशि को को मार रहा था ।
मैंने उसको बचाया तो वह मुझे भी मारने लगा ।मैंने हिम्मत करके निशि को उठाया ,और चुप कराया पता नहीं मेरे अंदर कहां से हिम्मत आ गई ।कि मैंने रोमी को खींच कर बाथरूम में बंद कर दिया ।अपना और निशि का नजरूरी समान बैग में डाला ,और वहां से स्टेशन पर आ गई ।
जाने को तो मैं दादी के घर भी जा सकती थी। लेकिन वह मुझे वहां से ढूंढ लेता, मैं निशी को कमजोर और बेबस नहीं बनाना चाहती।
इसलिए मैं इसको लेकर स्टेशन पर आ गई इतने में आपबीती सुनाती रही। आंटी की आंखों से आंसू बहते रहे और वह मेरे को प्यार से सहलाती रही । उन्होंने गले लगाते हुए कहा तृषा परेशान मत हो ट्रेन रात को देहरादून पहुंचेगी ।और "तुम अब मेरे घर चल रही हो !"मेरे पति का भी कुछ समय पहले ही निधन हुआ है मैं बिल्कुल अकेली रहती हूं ,मेरे कोई संतान नहीं है
।.मेरे पति बहुत अच्छे स्वभाव के थे वह मुझे बहुत प्यार करते थे ।पर शायद संतान का सुख उस समय मेरे नसीब में नहीं था ,शायद इसीलिए ईश्वर ने तुम्हें मुझसे मिलाया है।
तुम शांत हो जाओ और खाना खाओ ।मैं तुम्हारे बिना खाना नहीं खा पाऊंगी। यह कहकर उन्होंने निशी को मेरी गोद से ले लिया ।उसको प्यार करने लगी ।मुझसे बोली तुम मुझे आंटी नहीं मां कहोगी ,।उन्हें त्रिषा में अपनी बेटी दिखने लगी थी ।वह जिस ममता को तरस रही थी वह सब निशी पर लुटाना चाहती थी।
निशी मुझे नानी कहेगी और तुम पढ़ना चाहती हो ना तो मैं तुम्हें पढाऊंगी जब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओगी ।तब तुम से ब्याज समेत सब पैसे वसूल लूंगी।
रोमी रोमी का क्या होगा वह तो मुझे तंग करेगा नहीं निशी सुबकते हुए बोली " मैं एक समाज सुधारक भी हूं, जो नारियों के अधिकार के कानून के खिलाफ आवाज उठाती हैं मैं उन्हें जानती हूं हम उनसे बात कर लेंगे अब तुम्हें रोमी से डरने की कोई जरूरत नहीं।"
तृषा को तो ऐसा लग रहा था जैसे उसे उसकी खोई हुई मां वापस मिल गई ।और वह वापस उनके सीने से लग कर रो पड़ी "अरे पगली क्यों रो रही है मैं हूं ना "!तृषा को तो अपने भाग्य पर यकीन ही नहीं हो रहा था अचानक से उसे इतनी खुशी मिल गई ..।वह एक बार फिर भगवान का धन्यवाद कर उठी उसे विश्वास हो गया कि ईश्वर सबकी मदद करता है। कुछ रिश्ते ऊपर से बनकर आते हैं जो हमारे जीवन में मिठास भर जाते हैं
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
28.6.2022
# मासिक लेखन प्रतियोगिता हेतु
Pallavi
29-Jun-2022 06:46 PM
Nice post 👍
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Reyaan
29-Jun-2022 05:40 PM
बहुत खूब
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Abhinav ji
29-Jun-2022 07:40 AM
Nice
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